बौद्ध धर्म में कर्म (अर्थात् आपके कार्य) और उनके परिणाम को एक अत्यंत महत्वपूर्ण सिद्धांत के रूप में देखा जाता है। बौद्ध धर्म सिखाता है कि हमारी हर क्रिया का परिणाम निश्चित होता है, और हम जो कुछ भी करते हैं, उसका प्रभाव हमारी वर्तमान और भविष्य की परिस्थितियों पर पड़ता है। माफी मांगना या पश्चाताप करना, हालांकि यह एक आंतरिक सुधार की प्रक्रिया हो सकती है, लेकिन यह उस कर्म के प्रभाव से आपको बचा नहीं सकती। आप जो कुछ भी करते हैं, उसका परिणाम भुगतना अनिवार्य है—यह एक अटल सत्य है।
कर्म का सिद्धांत
बौद्ध धर्म में "कर्म" का अर्थ है "क्रिया" या "कार्य"। यह सिद्धांत बताता है कि आपके हर अच्छे या बुरे काम का परिणाम आपको भुगतना पड़ता है। बौद्ध धर्म यह नहीं मानता कि सिर्फ माफी मांगने से आप अपने बुरे कर्मों से छुटकारा पा सकते हैं। आपके किए हुए कर्मों का प्रभाव आपके जीवन पर अवश्य पड़ता है, चाहे वह इस जीवन में हो या अगले जीवन में। इसलिए, "कर्म का न्याय" अनिवार्य है—आपको अपने कर्मों की कीमत चुकानी ही होगी।
माफी से नहीं, कर्म से मिलता है परिणाम
जब कोई बुरा काम करता है और बाद में माफी मांगता है, तो इससे उस कर्म के परिणाम को टाला नहीं जा सकता। माफी केवल आपके मन की स्थिति को शुद्ध करने में मदद कर सकती है, लेकिन जो आपने किया है, उसके परिणाम से आपको बचा नहीं सकती। उदाहरण के तौर पर, यदि किसी ने किसी को धोखा दिया या किसी के साथ अन्याय किया, तो माफी मांगने से उस धोखे का परिणाम नहीं मिटेगा। उन्हें अपने किए कर्मों का परिणाम भुगतना ही होगा। बौद्ध धर्म कहता है कि कर्म का असर तब तक समाप्त नहीं होता जब तक उसका परिणाम सामने न आ जाए, और माफी इस प्रक्रिया को नहीं बदल सकती।
बुद्ध का दृष्टिकोण: आपसे कोई नहीं बचा सकता
गौतम बुद्ध ने यह स्पष्ट रूप से कहा था कि व्यक्ति अपने कर्मों से कभी बच नहीं सकता। वह चाहे जितनी भी कोशिश कर ले, चाहे माफी मांगे या किसी दूसरे के साथ तुलना करे, कर्म का परिणाम अटल है। आपके हर छोटे-बड़े कर्म का हिसाब रखा जाता है। इसे बौद्ध धर्म में 'कर्म का चक्र' कहा जाता है। जैसे कोई किसान बीज बोता है और उसे जो फसल मिलती है, वह उसी बीज पर निर्भर होती है, वैसे ही हम अपने जीवन में जो कर्म करते हैं, उनके परिणाम भी उसी के अनुसार हमें मिलते हैं।
उदाहरण से समझें:
- धन और लालच: मान लीजिए कोई व्यक्ति लालच में आकर दूसरों से धोखा करता है और उनकी संपत्ति चुरा लेता है। चाहे वह बाद में अपने किए पर पश्चाताप भी करे, लेकिन इस कर्म का परिणाम उसे भुगतना ही होगा। बौद्ध धर्म सिखाता है कि यह परिणाम किसी न किसी रूप में अवश्य उसके जीवन में वापस आएगा, चाहे वह गरीबी हो, दुख हो, या मानसिक अशांति।
- हिंसा और अन्याय यदि कोई किसी के साथ हिंसा करता है या किसी को शारीरिक या मानसिक रूप से नुकसान पहुंचाता है, तो यह कर्म एक तरह से ब्रह्मांड में नकारात्मक ऊर्जा का बीजारोपण है। यह बीज वापस फल देता है—हिंसा करने वाले को उसी प्रकार का दुख या कष्ट झेलना पड़ता है। माफी मांगने से कर्म की ऊर्जा नष्ट नहीं होती, उसे भुगतना ही पड़ता है।
कर्म से छुटकारा नहीं
बौद्ध धर्म में यह मान्यता है कि चाहे आप कितने भी अच्छे काम करें, वे आपके बुरे कर्मों को समाप्त नहीं कर सकते। हर कर्म का अपना स्वतंत्र परिणाम होता है, और उससे कोई नहीं बच सकता। उदाहरण के लिए, अगर आपने किसी के साथ अन्याय किया है, तो उसकी भरपाई दूसरे अच्छे कर्मों से नहीं की जा सकती। आपको उस विशेष अन्याय का परिणाम भुगतना ही पड़ेगा।
हिन्दू धर्म और महाभारत में कर्म का उदाहरण
बौद्ध धर्म की तरह ही, हिन्दू धर्म में भी कर्म का सिद्धांत बहुत महत्वपूर्ण है। इसका एक महत्वपूर्ण उदाहरण महाभारत से लिया जा सकता है, जहाँ भगवान श्रीकृष्ण और पांडवों को भी अपने कर्मों का परिणाम भुगतना पड़ा। श्रीकृष्ण, जो विष्णु का अवतार थे, गांधारी के शाप के कारण अपने कुल का विनाश देखने को मजबूर हुए। यह दर्शाता है कि चाहे आप भगवान का अवतार ही क्यों न हों, कर्म के परिणाम से कोई भी बच नहीं सकता। कृष्ण ने युद्ध में अधर्म के खिलाफ धर्म की स्थापना की, लेकिन फिर भी कर्म का सिद्धांत इतना निष्पक्ष है कि उन्हें भी अपने कर्मों का फल भुगतना पड़ा।
पांडवों को भी महाभारत के युद्ध के बाद अपने कुछ गलतियों और कर्मों का दुष्परिणाम भुगतना पड़ा। युधिष्ठिर, जिन्होंने जीवनभर सत्य और धर्म का पालन किया, उन्हें भी युद्ध के परिणामस्वरूप अपने प्रियजनों को खोने का कष्ट सहना पड़ा। द्रौपदी के अपमान और अभिमन्यु की मृत्यु, दोनों ही पांडवों के कर्मों का नतीजा थे, जिन्हें उन्होंने युद्ध के माध्यम से झेला।
जीवन में संतुलन बनाए रखना
बौद्ध धर्म हमें सिखाता है कि हमें हर कर्म करने से पहले यह सोचना चाहिए कि इसका परिणाम क्या होगा। क्योंकि चाहे वह अच्छा हो या बुरा, उसका प्रभाव हमारे जीवन पर पड़ेगा। संतुलित और समझदारी से किए गए कर्म ही हमें सुख और शांति की ओर ले जाते हैं। और जब हम समझते हैं कि माफी से कर्मों के परिणाम नहीं बदल सकते, तो हम और भी जिम्मेदारी से अपने कर्म करने लगते हैं।
निष्कर्ष: कर्म का चक्र अटल है
बौद्ध धर्म और हिन्दू धर्म के अनुसार, हर क्रिया का परिणाम अवश्य होता है। माफी मांगने से आपका अंतःकरण शुद्ध हो सकता है, लेकिन वह आपके कर्मों के परिणाम को टाल नहीं सकती। इसलिए, हर निर्णय और हर कर्म सोच-समझकर करें, क्योंकि जो भी आप करेंगे, उसका परिणाम आपको ही भुगतना पड़ेगा।